🫅 समानता का महत्व | Treat Everyone Equally 🪶

पंचतंत्र की कहानियाँ | Panchatantra Stories | Panchatantra Story of Equality

वर्धमान नगर अपने वैभव और समृद्धि के लिए प्रसिद्ध था। वहीं पर रहता था — दंतिल, एक अत्यंत कुशल, समझदार और ईमानदार व्यापारी। उसकी बुद्धिमत्ता, सूझ-बूझ और सच्चाई की चर्चा दूर-दूर तक फैली थी। राजा स्वयं उसके काम से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसे राज्य का प्रशासक नियुक्त कर दिया।

राज्य में जब भी कोई कठिन समस्या आती, दंतिल अपनी चतुराई से उसका हल निकाल देता। राजा और प्रजा — दोनों ही उससे बेहद प्रसन्न थे।

कुछ समय बाद दंतिल के घर एक बड़ी खुशी आई — उसकी इकलौती बेटी का विवाह तय हुआ। उसने सोचा, “यह अवसर तो पूरे नगर के साथ बांटना चाहिए।”
इसलिए उसने एक भव्य भोज का आयोजन किया। राजमहल के अधिकारी, मंत्री, सैनिक, व्यापारी, यहाँ तक कि सामान्य नागरिक — सबको निमंत्रण भेजा गया।

भोज के दिन उसके घर में मानो महल उतर आया हो। तरह-तरह के पकवानों की खुशबू हवा में तैर रही थी — केसर वाले लड्डू, घी में डूबी पूरी, मेवे की खीर, और पान के पत्तों से सजी थालियाँ। संगीत, हँसी, और मेहमानों की चहल-पहल से वातावरण गूंज रहा था।

उसी भीड़ में एक साधारण सेवक भी चला आया। वह वही व्यक्ति था जो रोज़ महल में झाड़ू लगाया करता था — कपड़ों पर धूल, पाँवों में फटे जूते, पर चेहरे पर मासूमियत।

वह शायद थोड़ा असमंजस में था, क्योंकि इतने बड़े आयोजन में वह पहले कभी नहीं गया था।
अपना स्थान ढूँढते-ढूँढते वह गलती से उस कुर्सी पर जा बैठा जो केवल राजपरिवार के सदस्यों के लिए आरक्षित थी।

Panchatantra Story of Equality

बस, यह देखकर दंतिल का चेहरा क्रोध से लाल हो गया।
वह सबके सामने गरजा —
“अरे मूर्ख! क्या तुझे मर्यादा नहीं मालूम? तू इस कुर्सी पर कैसे बैठ गया?”

सेवक सकपका गया। सब मेहमानों के सामने उसे अपमानित होना पड़ा। वह सिर झुकाकर चुपचाप वहां से चला गया, लेकिन उसके मन में बदले की आग जल उठी।
“आज उसने मुझे अपमानित किया है,” वह बड़बड़ाया, “कल मैं इसे ऐसा सबक सिखाऊंगा जिसे यह जिंदगी भर नहीं भूल पाएगा।”

अगले दिन सुबह, वही सेवक महल में झाड़ू लगा रहा था। राजा अपने कक्ष में अर्धनिद्रा में थे — आँखें आधी बंद, पर कान जागे हुए।
सेवक जानबूझकर धीमे-धीमे बड़बड़ाने लगा,
“अरे बाप रे! इस दंतिल की हिम्मत तो देखो — रानी के साथ दुर्व्यवहार करता है!”

राजा ने झटपट आँखें खोल दीं,
“क्या कहा तुमने?” उन्होंने पूछा।

सेवक तुरंत उनके चरणों में गिर पड़ा —
“महाराज! मुझसे बड़ी भूल हो गई। नींद पूरी न होने के कारण मैं बड़बड़ा रहा था। कृपा कर क्षमा करें।”

राजा ने सिर हिलाया, लेकिन उनके मन में संदेह का बीज पड़ चुका था।
“क्या दंतिल सच में इतना बढ़ गया है कि रानी का भी अनादर करे?” उन्होंने मन ही मन सोचा।

Panchatantra Story of Equality

धीरे-धीरे राजा ने दंतिल से दूरी बनानी शुरू कर दी। उसके ऊपर से अधिकार छीन लिए गए। दरबार में उसकी बातें अब अनसुनी होने लगीं।
दंतिल स्तब्ध रह गया —
“आखिर मैंने ऐसा क्या किया?”

इसी बीच वही सेवक एक दिन उसके पास आया, मुस्कुराते हुए बोला,
“क्या हुआ दंतिल जी? आपकी शान तो अब ठंडी पड़ गई लगती है। याद है न, आपने मुझे सबके सामने कैसे अपमानित किया था? अब बारी आपकी थी!”

दंतिल को सब समझ में आ गया।
“तो यह सारा खेल उसी का था…” उसने सोचा।

परंतु दंतिल बुद्धिमान था। उसने बदले में और अपमान करने के बजाय, समझदारी से काम लिया।
वह बोला, “भाई, मुझसे गलती हुई। उस दिन मैं क्रोध में था। चलो, आज मेरे घर आओ, मैं तुम्हारा सम्मान करूंगा।”

सेवक पहले तो झिझका, पर फिर दंतिल की सच्चाई देखकर मान गया।
दंतिल ने उसे प्रेम से बुलाया, अच्छे कपड़े पहनने को कहा, और भोजन में उसकी खूब खातिरदारी की — मिठाइयाँ, फल, मेवे सब परोसे।
सेवक का मन पिघल गया।

वह बोला, “आपने अपनी गलती मान ली, यही सच्चा बड़प्पन है। अब मैं आपकी इज़्ज़त वापस दिलाऊँगा।”

Panchatantra Story of Equality

अगले ही दिन, जब वह राजा के कक्ष में झाड़ू लगा रहा था, उसने फिर से जानबूझकर बड़बड़ाना शुरू किया —
“अरे भगवान! हमारा राजा कितना मूर्ख है, जो गुसलखाने में बैठकर खीरे खाता है!”

राजा ने तुनककर कहा, “क्या बकवास कर रहा है? अगर तू मेरा सेवक न होता, तो मैं अभी तुझे दंड देता!”

सेवक घुटनों के बल गिर पड़ा,
“महाराज, क्षमा करें। मैं नींद में था, मुँह से अनजाने में यह निकल गया।”

राजा कुछ देर सोच में पड़े, फिर उन्हें ख्याल आया —
“जब यह मेरे बारे में इतना बेहूदा झूठ बोल सकता है, तो शायद दंतिल के बारे में भी इसका कहना झूठ ही रहा होगा!”

अगले दिन राजा ने दंतिल को दरबार में बुलवाया,
“दंतिल, मुझसे भूल हो गई। मैंने बिना जांचे तुम्हारे विरुद्ध विश्वास किया। आज से तुम्हें तुम्हारा पद और सम्मान वापस मिलता है।”

दंतिल ने सिर झुकाकर कहा, “महाराज, यही आपकी महानता है।”
उस दिन से दंतिल फिर से सबका प्रिय बन गया — और उसने सीखा कि कभी भी अपमान या क्रोध में निर्णय नहीं लेना चाहिए, क्योंकि उसका परिणाम बहुत दूर तक जाता है।

आशा है कि आपको यह रोचक कथा (Panchatantra Story of Equality) पढ़कर आनंद आया होगा। हमारे होम पेज (Home) पर आपको कथाओं का ऐसा अनोखा संग्रह मिलेगा, जहाँ हर मनःस्थिति और हर आयु के लिए कुछ न कुछ विशेष सहेजा गया है। यहाँ प्रेरणादायी प्रसंग हैं जो जीवन को नई दिशा देते हैं, हास्य से परिपूर्ण कहानियाँ हैं जो चेहरे पर मुस्कान बिखेर देती हैं, कठिन समय में संबल देने वाली प्रेरक कथाएँ हैं, और बच्चों के लिए ऐसी नैतिक गाथाएँ भी जो उनके चरित्र और सोच को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाएँ। कुछ कथाएँ आपको बचपन की मासूम स्मृतियों में ले जाएँगी, तो कुछ आपके विचारों को नए दृष्टिकोण से देखने के लिए विवश करेंगी। यह संग्रह मात्र कहानियों का समूह नहीं, बल्कि एक यात्रा है—कल्पनाओं को उड़ान देने वाली, जीवन में सकारात्मकता का संचार करने वाली और हर पीढ़ी को मानवीय मूल्यों से संपन्न बनाने वाली। यहाँ हर पाठक के लिए कुछ अनोखा और अमूल्य निहित है।

Scroll to Top